Essay on Pollution in Hindi : प्रदूषण पर निबंध हिंदी में 100 – 500 शब्दों में यहाँ देखें
Essay on Pollution in Hindi प्रदूषण : कारण और निदान अथवा प्रदूषण की समस्या
“साँस लेना भी अब मुश्किल हो गया है।
वातावरण इतना प्रदूषित हो गया है।”
विस्तृत रूपरेखा :-
(1) प्रस्तावना,
(2) प्रदूषण के विभिन्न प्रकार,
(3) प्रदूषण की समस्या का समाधान,
(4) उपसंहार
प्रस्तावना- प्रदूषण का अर्थ-प्रदूषण पर्यावरण में फैलकर उसे प्रदूषित बनाता है और इसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर उल्टा पड़ता है। इसलिए हमारे आस-पास की बाहरी परिस्थितियाँ जिनमें वायु, जल, भोजन और सामाजिक परिस्थितियाँ आती हैं; वे हमारे ऊपर अपना प्रभाव डालती हैं। प्रदूषण एक अवांछनीय परिवर्तन है; जो वायु, जल, भोजन, स्थल के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों पर विरोधी प्रभाव डालकर उनको मनुष्य व अन्य प्राणियों के लिए हानिकारक एवं अनुपयोगी बना देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवधारियों के समग्र विकास के लिए और जीवनक्रम को व्यवस्थित करने के लिए वातावरण को शुद्ध बनाये रखना परम आवश्यक है। इस शुद्ध और सन्तुलित वातावरण में उपर्युक्त घटकों की मात्रा निश्चित होनी चाहिए। अगर यह जल, वायु, भोजनादि तथा सामाजिक परिस्थितियाँ अपने असन्तुलित रूप में होती हैं; अथवा उनकी मात्रा कम या अधिक हो जाती है, तो वातावरण प्रदूषित हो जाता है तथा जीवधारियों के लिए किसी-न-किसी रूप में हानिकारक होता है। इसे ही प्रदूषण कहते हैं।
प्रदूषण के विभिन्न प्रकार –
प्रदूषण निम्नलिखित रूप में अपना प्रभाव दिखाते हैं-
(1) वायु प्रदूषण – वायुमण्डल में गैस एक निश्चित अनुपात में मिश्रित होती है और जीवधारी अपनी क्रियाओं तथा साँस के ऑक्सीजन और कार्बन द्वारा डाइ-ऑक्साइड का सन्तुलन बनाये रखते हैं। आज मनुष्य अज्ञानवश आवश्यकता के नाम पर इन सभी गैसों के सन्तुलन को नष्ट कर रहा है। आवश्यकता दिखाकर वह वनों को काटता है जिससे वातावरण में ऑक्सीजन कम होती है। मिलों की चिमनियों के धुएँ से निकलने वाली कार्बन डाइ-ऑक्साइड, क्लोराइड, सल्फर-डाइ-ऑक्साइड आदि भिन्न-भिन्न गैसें वातावरण में बढ़ जाती हैं। वे विभिन्न प्रकार के प्रभाव मानव शरीर पर ही नहीं-वस्त्र, धातुओं तथा इमारतों तक पर भी डालती हैं।
यह प्रदूषण फेफड़ों में कैंसर, अस्थमा तथा नाड़ीमण्डल के रोग, हृदय सम्बन्धी रोग, आँखों के रोग, एक्जिमा तथा मुहासे इत्यादि रोग फैलाता है।
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(2) जल-प्रदूषण- जल के बिना कोई भी जीवधारी, पेड़-पौधे जीवित नहीं रह सकते। इस जल में भिन्न-भिन्न खनिज तत्व, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं, जो एक विशेष अनुपात में होती हैं। वे सभी के लिए लाभकारी होती हैं। लेकिन, जब इनकी मात्रा अनुपात में कम या अधिक हो जाती है; तो जल प्रदूषित हो जाता है और हानिकारक बन जाता है। जल प्रदूषण के कारण अनेक रोग पैदा करने वाले जीवाणु, वायरस, औद्योगिक संस्थानों से निकले पदार्थ, कार्बनिक पदार्थ, रासायनिक पदार्थ, खाद आदि हैं। सीवेज को जलाशय में डालकर उपस्थित जीवाणु कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण करके ऑक्सीजन का उपयोग कर लेते हैं जिससे ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और उन जलाशयों में मौजूद मछली आदि जीव मरने लगते हैं। ऐसे प्रदूषित जल से टायफाइड, पेचिस, पीलिया, मलेरिया इत्यादि अनेक जल जनित रोग फैल जाते हैं। हमारे देश के अनेक शहरों को पेयजल निकटवर्ती नदियों से पहुँचाया जाता है और उसी नदी में आकर शहर के गन्दे नाले, कारखानों का अपशिष्ट
पदार्थ, कचरा आदि डाला जाता है, जो पूर्णत: उन नदियों के जल को प्रदूषित बना देता है।
(3) रेडियोधर्मी प्रदूषण – परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणु परीक्षणों से जल, वायु तथा पृथ्वी का सम्पूर्ण पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है और वह वर्तमान पीढ़ी को ही नहीं, बल्कि भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए भी हानिकारक सिद्ध हुआ है। इससे धातुएँ पिघल जाती हैं और वह वायु में फैलकर उसके झोंकों के साथ सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त हो जाती हैं तथा भिन्न-भिन्न रोगों से लोगों को ग्रसित बना देती हैं।
(4) ध्वनि प्रदूषण- आज ध्वनि प्रदूषण से मनुष्य की सुनने की शक्ति कम हो रही है। उसकी नींद बाधित हो रही है, जिससे नाड़ी संस्थान सम्बन्धी और नींद न आने के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। मोटरकार, बस, जेट विमान, ट्रैक्टर, लाउडस्पीकर, बाजे, सायरन और मशीनें अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण पर्यावरण को प्रदूषित बना रहे हैं। इससे छोटे-छोटे कीटाणु नष्ट हो रहे हैं और मन बहुत-से पदार्थों का प्राकृतिक स्वरूप भी नष्ट हो रहा है।
(5) रासायनिक प्रदूषण – आज कृषक अपनी कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक खादों, कीटनाशक और रोगनाशक दवाइयों का प्रयोग कर रहा है, जिससे उत्पन्न खाद्यान्न, फल, सब्जी, पशुओं के लिए चारा आदि मनुष्यों तथा भिन्न-भिन्न जीवों के ऊपर घातक प्रभाव डालते हैं और उनके शारीरिक विकास पर भी इसके दुष्परिणाम हो रहे हैं।
प्रदूषण की समस्या का समाधान- आज औद्योगीकरण ने इस प्रदूषण की समस्या को अति गम्भीर बना दिया है। इस औद्योगीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न प्रदूषण को व्यक्तिगत और शासकीय दोनों ही स्तर पर रोकने के प्रयास आवश्यक हैं। भारत सरकार ने सन् 1974 ई. में जल प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम लागू कर दिया है जिसके अन्तर्गत प्रदूषण को रोकने के लिए अनेक योजनाएँ बनायी गई हैं।
प्रदूषण को रोकने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है- वनों का संरक्षण। साथ ही, नये वनों का लगाया जाना तथा उनका विकास करना। जन-सामान्य में वृक्षारोपण की प्रेरणा दिया जाना, इत्यादि प्रदूषण की रोकथाम के सरकारी कदम हैं। इस बढ़ते हुए प्रदूषण के निवारण के लिए सभी लोगों में जागृति पैदा करना भी महत्त्वपूर्ण कदम है; जिससे जानकारी प्राप्त कर उस प्रदूषण को दूर करने के समन्वित प्रयास किये जा सकते हैं।
नगरों, कस्बों और गाँवों में स्वच्छता बनाये रखने के लिए सही प्रयास किये जाएँ। बढ़ती हुई आबादी के निवास के लिए समुचित और सुनियोजित भवन-निर्माण की योजना प्रस्तावित की जाए। प्राकृतिक संसाधनों का लाभकारी उपयोग करने तथा पर्यावरणीय विशुद्धता बनाये रखने के उपायों की जानकारी विद्यालयों में पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षार्थियों को दिये जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
उपसंहार- इस प्रकार सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के द्वारा पर्यावरण की शुद्धि के लिए समन्वित प्रयास किये जाएँगे, जो मानव-समाज (सर्वे सन्तु निरामया) वेद वाक्य की अवधारणा को विकसित करके सभी जीवमात्र के सुख-समृद्धि की कामना कर सकता है।
प्रदूषण पर 500+ शब्द निबंध
प्रदूषण समस्या अथवा पर्यावरण प्रदूषण
” मानवता पर बढ़ रहा रातत प्रदूषण भार।
मनुज अचेतन हो रहा कैसे हो ऊद्वार ।”
रूपरेखा-
(1) प्रस्तावना,
(2) वैज्ञानिक प्रगति और प्रदूषण,
(3) प्रदूषण का घातक प्रभाव,
(4) पर्यावरण शुद्धि,
(5) उपसंहार
प्रस्तावना – ईश्वर ने प्रकृति की गोद में उज्ज्वल प्रकाश, निर्मल जल और स्वच्छ वायु का वरदान दिया है।’ मानव ने प्रकृति पर अपना आधिपत्य जमाने की धुन में वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर प्रकृति को स्वामिनी के महत्त्वपूर्ण पद से हटाकर सेविका के स्थान पर प्रतिष्ठित कर दिया। प्रकृति की गोद में विकसित होने वाले प्रसून, सुन्दर लताएँ, हरे-भरे वृक्ष तथा चहचहाते विहग अब उसके आकर्षण के केन्द्र-बिन्दु नहीं रहे। प्रकृति का उन्मुक्त वातावरण अतीत के गर्भ में विलीन हो गया। मानव मने की जिज्ञासा और नयी-नयी खोजों की अभिलाषा ने प्रकृति के सहज कार्यों में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ किया है। अतः पर्यावरण में प्रदूषण होता जा रहा है। यह प्रदूषण मुख्यतः तीन रूपों में दिखायी देता है-
(1) वायु प्रदूषण, (2) जल प्रदूषण, (3) ध्वनि प्रदूषण।
प्रदूषण का प्रकोप- वैज्ञानिक प्रगति के कारण वायु, जल और ध्वनि के प्रदूषण ने प्रकृति के सहज-स्वाभाविक रूप को विकृत किया है। इससे पर्यावरण में अनेक प्रकार से प्रदूषण हुआ है और प्राणीमात्र के लिए यह किसी भी प्रकार हितकर नहीं है। पर्यावरण एक व्यापक शब्द है, जिसका सामान्य अर्थ है- प्रकृति द्वारा प्रदान किया गया समस्त भौतिक और सामाजिक वातावरण। इसके अन्तर्गत जल, वायु, भूमि, पेड़-पौधे, पर्वत तथा प्राकृतिक सम्पदा और परिस्थितियाँ आदि का समावेश होता है।
आज वायु, जल तथा ध्वनि प्रदूषण के कारण जीवन कष्टकारक हो गया है। मानव ने बनिज और कच्चे माल के लिए खानों की खुदाई की, धातुओं को गलाने के लिए कोयले की भट्टियाँ जलायीं तथा कारखानों की स्थापना करके चिमनियों से ढेर सारा धुआँ आकाश में पहुंचाकर वायुमण्डल को प्रदूषित किया। फर्नीचर और भवन-निर्माण के लिए, उद्योगों और ईंधन आदि के लिए जंगलों की कटाई करके स्वच्छ वायु का अभाव उत्पन्न कर दिया। इससे भूमिक्षरण और भूस्खलन होने लगा तथा नदियों के जल से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई। कल-कारखानों और शोधक कारखानों के अवशिष्ट गन्दे नालों में बहकर पवित्र नदियों के जल को दूषित करने लगे। विज्ञान निर्मित तेज गति के वाहनों का दूषित धुआँ तथा तीव्र ध्वनि से बजने वाले हॉर्न और साइरनों की कर्ण भेदी ध्वनि से वातावरण प्रदूषित होने लगा। कृषि में रासायनिक खादों के प्रयोग से अनेक प्रकार के रोगों और विषैले प्रभावों को जन्म मिला। इस प्रकार वैज्ञानिक प्रगति पर्यावरण प्रदूषण में सहायक बनी।
प्रदूषण का घातक प्रभाव – आधुनिक युग में सम्पूर्ण संसार पर्यावरण के प्रदूषण से पीड़ित है। हर साँस के साथ इसका जहर शरीर में प्रवेश पाता है और तरह-तरह की विकृतियाँ पनपती जा रही हैं। इस सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि प्रदूषण की इस बढ़ती हुई गति से एक दिन यह पृथ्वी प्राणी तथा वनस्पतियों से विहीन हो सकती है और सभ्यता तथा प्रगति एक बीती हुई कहानी बनकर रह जायेगी।
पर्यावरण शुद्धि-दिनों-दिन बढ़ने वाले प्रदूषण की आपदा से बचाव का मार्ग खोजना आज की महती आवश्यकता है। इसके लिए सबका सम्मिलित प्रयास अपेक्षित है। वृक्षों की रक्षा करके इस महान् संकट से छुटकारा पाया जा सकता है। ये हानिकारक गैसों के प्रभाव को नष्ट करके प्राण-वायु प्रदान करते हैं, भूमि के क्षरण को रोकते हैं और पर्यावरण को शुद्धता प्रदान करते हैं।
उपसंहार – पर्यावरण की सुरक्षा और उचित सन्तुलन के लिए हमें जागरूक और सचेत होना परम आवश्यक है। वायु, जल, ध्वनि तथा पृथ्वी के प्रत्येक प्रकार के प्रदूषण को नियन्त्रित कर धीरे-धीरे उसे समाप्त करना आज के युग की माँग है। वास्तविकता यह है कि-
“गफलत में डूबा मनुज नहीं जागेगा।
जल-वायु प्रदूषण भूत नहीं भागेगा।।”
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Frequently Asked Question (FAQs)
वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) (Air Quality Index) दैनिक आधार पर वायु गुणवत्ता की रिपोर्ट करने के लिए एक सूचकांक है।
प्रदूषण पर हिंदी में निबंध लिखने के लिए आप इस लेख को संदर्भित कर सकते हैं। इस लेख में प्रदूषण पर निबंध से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
प्रदूषण मुख्य रूप से 4 प्रकार के होते हैं, जिन्हे वायु प्रदूषण (Air Pollution), जल प्रदूषण (Water Pollution), ध्वनि प्रदूषण (Pollution Essay), मृदा प्रदूषण (Soil Pollution) के रूप में जाना जाता है।
पटाखों के इस्तेमाल पर कमी, अधिक से अधिक पेड़ लगाकर, वाहनों के उपयोग पर कमी और अपने आस-पास स्वच्छता रखकर प्रदूषण में कमी की जा सकती है।
सांविधिक संगठन, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वर्ष 1974 में गठित किया गया था।
पर्यावरण में किसी भी पदार्थ (ठोस, तरल, या गैस) या ऊर्जा का किसी भी रूप (जैसे गर्मी, ध्वनि, या रेडियोधर्मिता) में उसके पुनर्नवीनीकरण, किसी हानिरहित रूप में संग्रहण या विघटित करने के स्तर से ज्यादा तेजी से फैलना ही प्रदूषण है। प्रदूषण उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जो हमारी पृथ्वी को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रहा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लंबे समय से चर्चा में है, 21वीं सदी में इसका हानिकारक प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया गया है। हालांकि विभिन्न देशों की सरकारों ने इन प्रभावों को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है।