Giridhar Kavirai Biography in Hindi : गिरिधर कविराय की रचनाएँ
➦ जीवन-परिचय :-
Giridhar Kavirai Biography in Hindi कवि रामभद्राचार्य ‘गिरिधर’ का जन्म जनवरी महीने की चौदहवीं तारीख को सन् 1950 ई. में उत्तर-प्रदेश के जौनपुर जिले के गाँव शाणीपुर में हुआ था। इनका पूरा नाम स्वामी रामभद्राचार्य है। दो वर्ष की अल्पायु में ही इनके दोनों नेत्रों की ज्योति सदा के लिए चली गई और ये कुछ भी देख नहीं सकते थे। इन्होंने अपने ही अध्यवसाय से और निरुत्साहित हुए बिना ही विद्यार्जन का उपाय स्वयं ढूँढ़ निकाला और अभ्यास करके ही श्रीमद्भगवद्गीता एवं रामचरितमानस इन्हें कंठस्थ हो गये। श्री ‘गिरिधर’ जी (जो इसी उपनाम से प्रसिद्ध हैं और लोगों द्वारा समादरित होते हैं) ने अपनी सभी परीक्षाओं में- प्रथम से लेकर एम. ए. तक-99 (निन्यानवे) प्रतिशत अंक प्राप्त किये। आपके ऊपर माँ शारदा के असीम कृपा और वरदहस्त रहा है।
‘होनहार विरवान के होत चीकने पात’ वाली कहावत अक्षरशः सत्य सिद्ध होती है। वे उच्चतर शिक्षा प्राप्त करने के प्रत्येक अवसर को प्राप्त करने में कभी पीछे नहीं रहे। इन्होंने संस्कृत व्याकरण सम्बन्धी किसी महत्वपूर्ण विषय में पी-एच. डी. की डिग्री प्राप्त करके अपनी कुशाग्र बुद्धित्व का परिचय दिया तथा कुछ समय के बाद संस्कृत के किसी अति महत्वपूर्ण विषय में डी. लिट्. की उपाधि भी प्राप्त कर ली। उपर्युक्त विवरण हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। मरि श्रम और निरन्तर अध्यवसाय से मनुष्य अपने ध्येय तक पहुँचने में सफल हो सकता है। सफलता के शिखर पर उत्साही और अपनी क्षमताओं में अटूट विश्वास रखने वाले ही पहुँचकर अपने देश और समाज को उन्नति पथ पर ले जाते हैं। ऐसे ‘गिरिधर’ जी को हम सम्मान प्रतिष्ठा देते हुए गौरवान्वित अनुभव करते हैं।
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Giridhar Kavirai Biography in Hindi
जन्म दिनांक | 1713 ई० |
जन्म स्थान | इलाहाबाद अवध क्षेत्र |
प्रमुख कुंडलियां | मुस्तफा – ए – प्रेस लाहौर (1874) नवल किशोर प्रेस लखनऊ (1833) गुलशन ए पंजाब प्रेस रावलपिंडी (1896) भार्गव बुक डिपो बनारस (1904) प्रमुख हैं। आप का सबसे बड़ा संग्रह ‘खेमराज श्रीकृष्णदास’ बंबई (1953) है। |
कुल कुंडलियां संस्करण | 10 |
भाषा | अवध, पंजाबी |
मृत्यु | 1770 ई० |
➦ साहित्य-सेवा:-
Giridhar Kavirai Biography in Hindi श्री ‘गिरिधर’ जी ने हिन्दी साहित्य और संस्कृत साहित्य के विकास के लिए निरन्तर प्रयास किया। उन्होंने दोनों भाषाओं में अनन्यतम ग्रंथों की सर्जना करके सूरकालीन भक्तियुग की परम्पराओं को अक्षुण्य बनाने का सतत् प्रयास किया है। उनका प्रयास अत्यन्त स्तुत्य है। भाषा में शास्त्रीयता विद्यमान है, साथ ही साथ लोकभाषा के प्रयोग एवं उसके सम्वर्द्धन के प्रयास अभी भी निरन्तर किए जा रहे हैं। संस्कृत भाषा को सामान्य जनभाषा के रूप में विकसित करने का तथा उसके प्रयोग की विधि में सरलता, सरसता एवं प्रवाह उत्पन्न करने का प्रयत्न आपके द्वारा किया जा रहा है। हमें विश्वास है कि ‘गिरिधर’ जी के दिशा निर्देशन में हिन्दी साहित्य एवं संस्कृत साहित्य अपने चरम विकास को प्राप्त कर सकेगा।
गिरिधर कविराय जीवन परिचय (Giridhar Kavirai Biography in Hindi)
नाम | गिरिधर कविराय |
मूल नाम | गिरिधर कविराय भाट |
जन्म | 1717 मतभेद |
स्थान | अवध मतभेद |
ख्याति | कवी |
रचनाएँ | गिरिधर कवी ग्रंथावली |
प्रकार | कुंडलियाँ |
विशेषता | भाषा का सरलीकरण |
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➦ रचनाएँ:-
स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा रचित कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
(1) प्रस्थानमयी काव्य – प्रस्थानमयी काव्य की रचना आचार्य जी ने संस्कृत भाषा में की । इस ग्रंथ की भाषा में सरसता और सरलता है तथा भाव-सम्प्रेषण की क्षमता विद्यमान है।
(2) भार्गव राघवीयम् महाकाव्य- ‘भार्गव राघवीयम्’ एक महाकाव्य है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है। अपने प्रकार का यह अद्वितीय महाकाव्य है।
(3) अरुन्धती महाकाव्य- इस महाकाव्य की रचना कवि श्री रामभद्राचार्य जी ने हिन्दी में की है। विषयवस्तु समाज के परिवेश में नवीनता उत्पन्न करके सुधार की परिकल्पना से बन्ध रखती है। जब 75 ग्रन्थों की रचना हिन्दी भाषा में की गई है। हिन्दी का स्वरूप परिष्कृत और परिमार्जित है।
साहित्य और शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिए आपने ‘जगद्गुरु’ रामभद्राचार्य विकलांग सावविद्यालय’ की स्थापना चित्रकूट में की है। शासन द्वारा आपको इस विश्वविद्यालय का जीवनपर्यन्त कुलाधिपति बनाया गया है।
साहित्य सेवा के लिए पुरस्कार –
आपको भारतीय संघ के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा-
(1) महर्षि वेदव्यास वादरायण पुरस्कार दिया गया है। इस पुरस्कार के लिए जीवनपर्यन्त एक लाख रुपये प्रतिवर्ष दिए जाते हैं।
(2) भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया है। इसके लिए पचास हजार रुपये दिये जाते हैं।
(3) दो लाख का श्री वाणी अलंकरण – यह पुरस्कार रामकृष्ण डालमिया वाणी न्यास, नई दिल्ली द्वारा दिया गया।
➦ भाव-पक्ष :-
(1) प्रेम और हृदय की उदात्तता- कवि रामभद्राचार्य की रचनाओं के भाव पक्षीय सबलता स्तुत्य है। हृदयगत भाव वास्तुजगत के प्रभाव से अनुभूतिजन्य हैं जिनमें प्रेम और हृदय की उदात्तता परिलक्षित होती है।
(2) वात्सल्य रस, भक्ति रस के परिपाक से सम्प्रक्त होकर अति पुष्ट होता गया है।
➦ कला-पक्ष :-
(1) भाषा – Giridhar Kavirai Biography in Hindi भाषा भावानुकूल प्रयुक्त हुई है। उसमें शास्त्रीयता का प्राधान्य है। भाषा का परिष्कृत स्वरूप लोकभाषा के विकास को नई दिशा देते हैं। अतः लोकभाषा में प्रवाह कीप्रबलता है। कवि ने भाव को स्पष्ट करने के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग किया है।
(2) शैली- कवि ने सूरदास की मुक्तक गेय-पद शैली को अपनाया है। उसमें विषय की विशदता और गम्भीरता को अनायास ही सरसता देकर एक विशेष शैली का अन्वेषण किया है।
(3) अलंकार योजना- कवि का अपने काव्य में अलंकार संयोजन सप्रयोजन नहीं होता है। वह तो अनायास ही भाव के अभिव्यक्तिकरण के लिए अपने आप ही प्रवेश प्राप्त कर लेते हैं। इनकी कृतियों में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास आदि महत्त्वपूर्ण सभी अर्थालंकारों और शब्दालंकारों का प्रयोग परिलक्षित होता है।
(4) छंद-योजना- कवि ने मुक्तक-छंद की संयोजना की है जिसे हम भक्तियुगीन सूरदास के चंद विधान के समकक्ष पाते हैं। अन्तर है, तो केवल भाषा का। सूर की भाषा परिष्कृत ब्रजभाषा है और रामभद्राचार्य जी की भाषा परिनिष्ठित खड़ी बोली हिन्दी।
➦ साहित्य में स्थान:-
कवि रामभद्राचार्य ‘गिरिधर’ हिन्दी और संस्कृत भाषा के विकास के लिए प्रयासरत है। उनके रचित ग्रन्थ हिन्दी और संस्कृत साहित्य की अक्षुण्यनिधि हैं। हम आशा करते हैं कि आपके द्वारा संस्कृत और हिन्दी साहित्य का विकास दिशा निर्दिष्ट होता रहेगा। हिन्दी और संस्कृत जगत आपके नृत्य कार्यों के लिए चिरऋणी है।
गिरिधर कविराय जीवन संबंधी कथा
Giridhar Kavirai Biography in Hindi कहते हैं इनका किसी बढ़ई से विवाद हो जाता हैं क्यूंकि इन्हें वृक्षों का दुरपयोग कतई मंजूर नहीं था उनके आँगन में एक बैर का वृक्ष था जिससे वे अत्यंत प्रेम करते थे बढ़ई ने उनके इसी प्रेम का फायदा उठाकर अपना बदला लेने की ठानी | एक दिन बढ़ई ने एक विशेष चारपाई बनाकर राजा को भेंट दी | उसकी विशेषता यह थी कि उसमे पंख लगाये गए थे उस पर बैठ कर व्यक्ति उड़ सकता था |
यह देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने बढ़ई को ऐसी कई चारपाई बनाने का हुक्म दिया | तब बढ़ई ने कहा इसे बनाने के लिए जो लकड़ी लगती हैं वो गाँव के गिरिधर के आँगन में खड़े बैर के पेड़ से ही मिलती हैं और वे अपने पेड़ से बहुत प्रेम करते हैं | तब राजा ने सैनिको के जरिये जबरजस्ती गिरिधर के बैर के पेड़ को कटवाकर बढ़ई को दे दिया जिसे देख गिरिधर इतने दुखी हो गये कि सदा के लिये अपने गाँव को अलविदा कह कर चले गये |
गिरिधर कविराय की रचनाओं की विशेषता
Giridhar Kavirai Biography in Hindi, गिरिधर कविराय मूलतः कुंडलियाँ लिखते थे जिनकी विशेषता होती हैं इनकी छह पंक्तियाँ | गिरिधर कवी अपनी दूसरी पंक्ति के अंतिम भाग का प्रयोग बड़े ही अनूठे ढंग से तीसरी पंक्ति के प्रथम भाग में करते थे जिससे कुंडली का सार अत्यंत रोचक बन जाता था | इनकी सबसे बड़ी विशेषता होती थी भाषा का सरलीकरण, जो आम व्यक्ति को सीधे पढ़कर भाव स्पष्ट कर देती थी | यह सभी कुंडलियाँ आम नागरिक को ध्यान में रखकर लिखी गई थी जो जीवन ज्ञान को दर्पण की तरह श्रोता के सामने प्रेषित कर दिया करती थी |
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गिरिधर की कुंडलियाँ दोहे एवं हिंदी अर्थ
कुंडली – 1
जानो नहीं जिस गाँव में, कहा बूझनो नाम ।
तिन सखान की क्या कथा, जिनसो नहिं कुछ काम ॥
जिनसो नहिं कुछ काम, करे जो उनकी चरचा ।
राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥
कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।
ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥
अर्थात :- Giridhar Kavirai Biography in Hindi गिरिधर कविराज कहते हैं कि जिस जगह से तुम्हे कोई लेना देना नहीं हैं उसके बारे में क्यूँ पूछते हो, ऐसे लोगों की बाते भी क्यूँ करते हो जिनसे तुम्हारा कोई संबंध नहीं | जिनसे हमें कोई लेना देना नहीं होता उनकी बाते जो लोग करते हैं उनके बीच दुश्मनी हो जाती हैं | जिनसे हमारा कोई काम हो उसी से मतलब रखो |
कुंडली – 2
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
अर्थात :- कविराज गिरधर कहते हैं कि हमेशा अपने पास लाठी रखे, अगर राह में गहरी नदी, नाला आ जाता हैं तो लाठी सहारा देती हैं, अगर कोई कुत्ता पीछे पड़ जाता हैं तब भी लाठी उससे बचाती हैं, अगर कोई दुश्मन हमला कर दे तो लाठी उसे भगा देती हैं इसलिए कवी बार-बार सभी से कहते हैं कि सारे हथियार छोड़ कर अपने पास बस रखो लाठी |
कुंडली – 3
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥
अर्थात :- कविराज गिरिधर कहते हैं कि जो बीत गया उसे जाने दो, बस आगे की सोच, जो हो सकता हैं उसी में अपना मन लगा अगर जिसमे मन लगता हैं वही करेगा तो सफल जरुर होगा | और ऐसे में कोई हँसेगा नहीं इसलिए कवी राज कहते हैं जो मन कहे वही करो बस आगे का देखो पीछे जो गया उसे बीत जाने दो |
कुंडली – 4
गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥
अर्थात :- जिनमे गुण होते हैं उन्ही की हजारो की भीड़ में पूछ होती हैं और जिनमे गुण नहीं होते उनको नही पूछता | जैसे कोयल और कौए दोनों की आवाज सब सुनते हैं लेकिन सभी को कोकिला की आवाज ही अच्छी लगती हैं | दोनों समान दीखते हैं एक ही रंग के हैं लेकिन कौआ सभी को अपवित्र लगता हैं इसलिए कवि गिरिधर कहते हैं कि बिना गुण को कोई नहीं लेता,गुणों के सहस्त्र ग्राहक होते हैं |
कुंडली – 5
दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥
ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह ‘गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥
अर्थात :- केवल दौलत पाने के लिए ही कार्यं मत करो ना उसका कोई अभिमान करों यह उसी प्रकार हैं जैसे चंचल जल चार दिन के लिए होता हैं यह भी नहीं ठहरता | इस जीवन में जीते हुए भगवान का नाम लो, अच्छी वाणी बोलो और सभी से प्रेम करो | कवी कहते हैं कि पैसा बस चार दिन का हैं बाकि सभी के साथ व्यवहार बना रहता हैं जो सच्ची दौलत हैं |
कुंडली – 6
झूठा मीठे वचन कहि, ॠण उधार ले जाय।
लेत परम सुख उपजै, लैके दियो न जाय॥
लैके दियो न जाय, ऊँच अरु नीच बतावै।
ॠण उधार की रीति, मांगते मारन धावै॥
कह गिरिधर कविराय, जानी रह मन में रूठा।
बहुत दिना हो जाय, कहै तेरो कागज झूठा॥
अर्थात :- जो व्यक्ति झूठा होता हैं वो हमेशा मीठे वचन बोलता हैं आपसे उधार ले जाता हैं उसे लेने पर अत्यंत सुख महसूस होता हैं लेकिन देने का वो नाम नही लेता | वो हमेशा अच्छे व्यक्ति को बुरा कहता हैं | उधार का लेकर जीना ही उसकी निति है जो मरते दम तक वो निभाता हैं यह अपने मन में रख लो कि बहुत दिन बीत जाने पर जब तुम उधार लेने जाओगे तो वो मुँह पर बोल देगा कि उधार नही लिया तेरा प्रमाण झूठ हैं |
गिरिधर कविराय से संबंधित प्रश्न उत्तर
Q1. शिव सिंह सेंगर के मतानुसार गिरिधर कविराय का जन्म कब और कहां हुआ?
Ans. शिव सिंह सेंगर ने गिरिधर कविराय का जन्म सन 1713 ई० तथा रचनाकाल 18वीं सदी माना है। आपका जन्म इलाहाबाद (अवध क्षेत्र) के आसपास के रहने वाले माना जाता है।
Q2. गिरिधर कविराय कौन थे?
Ans. हिंदी के मशहूर कवि व कुंडली लेखक थे।
Q3. गिरिधर की कुंडलियों की भाषा कौन सी है?
Ans. अवधी भाषा।
Q4. कुंडलियों के सबसे बड़े संग्रह में कुल कितने कुंडलियां हैं?
Ans. 457
Q5. गिरिधर कविराय की प्रमुख कुंडलियां कौन सी है?
Ans. मुस्तफा – ए – प्रेस लाहौर (1874), नवल किशोर प्रेस लखनऊ (1833), गुलशन ए पंजाब प्रेस रावलपिंडी (1896), भार्गव बुक डिपो बनारस (1904) प्रमुख हैं। आप का सबसे बड़ा संग्रह ‘खेमराज श्रीकृष्णदास’ बंबई (1953) है।