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Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay: सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय एवं रचनाएँ

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Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay: सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय एवं रचनाएँ

Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay: सुमित्रानंदन पंत हिन्दी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के चार स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्हें सौंदर्य के अप्रतीम कवि और ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के रूप में भी जाना जाता हैं। क्या आप जानते हैं कि सुमित्रानंदन पंत ने मात्र सात वर्ष की अल्प आयु में भी काव्य रचनाएँ करना शुरू कर दिया था। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी काव्य धारा में अनुपम रचनाएँ की जिसमें ‘वीणा’‘पल्लव’‘चिदंबरा’‘युगांत’ और ‘स्वर्णधूलि’ प्रमुख मानी जाती हैं।

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सुमित्रानंदन पंत ने अपना संपूर्ण जीवन लेखन कार्य को ही समर्पित कर दिया था। हिंदी साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें ‘पद्म भूषण’‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ जैसे विशेष सम्मानों से नवाजा गया हैं। बता दें कि भारत में जब टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ तो उसका भारतीय नामकरण ‘दूरदर्शन’ सुमित्रानंदन पंत ने ही किया था। आइए अब हम Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay और उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

नाम सुमित्रानंदन पंत
अन्य नाम गुसाईं दत्त
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखंड
पेशा अध्यापक, लेखक, कवि
भाषा हिंदी
काव्य युग छायावाद
मुख्य काव्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
उपन्यास हार (1960)
सम्मान पद्म भूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि।
निधन 28 दिसंबर 1977 (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश)
संग्रहालय सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका, कौसानी गांव (उतराखंड)

Table of Contents

• जीवन-परिचय:-

प्रारम्भ में छायावादी फिर प्रगतिवादी और अन्त में आध्यात्मवादी सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म हिमालय की अनन्त सौन्दर्यमयी प्रकृति की गोद में बसे कूर्मांचल प्रदेश (अल्मोड़ा जिला) के कौसानी नामक ग्राम में सन् 1900 ई. (संवत् 1957 वि.) में हुआ था। जन्म के कुछ समय बाद इनकी माता सरस्वती देवी का देहावसान हो गया था। मातृहीन बालक ने प्रकृति माँ की गोद में
बैठकर घण्टों तक चिन्तनलीन होना सीख लिया। इससे आभ्यन्तरिक विचारशीलता का संस्कार विकसित होने लगा। अपने गाँव और अल्मोड़ा के शासकीय हाईस्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की और काशी से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। सेन्ट्रल म्योर कॉलेज में एफ. ए. की कक्षा में अध्ययनरत सुमित्रानन्दन पन्त सन् 1921 ई. गाँधी जी के प्रस्तावित असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गए। कॉलेज पढ़ाई छूट गई। बाद में स्वाध्याय से ही अंग्रेजी, संस्कृत एवं बंगला साहित्य का गहन अध्ययन किया। 29 सितम्बर, सन् 1977 ई. को प्रकृति का गीतकार हमारे बीच से उठ गया।

• साहित्य-सेवा:

इनका बचपन का नाम गुसाई दत्त था। कविता करने की रुचि बचपन से ही थी। इनकी प्रारम्भिक कविता ‘हुक्के का धुँआ’ थी। काव्य की निरन्तर साधना से शीर्षस्थ कवियों में प्रतिष्ठित हुए। कालाकांकर नरेश के सहयोगी रहे। ‘रूपाभ’ पद के सम्पादक का कार्य सफलतापूर्वक किया। बाद में सन् 1950 ई. में आकाशवाणी में अधिकारी बने। अविवाहित पन्त ने सारा जीवन साहित्य साधना में ही समर्पित कर दिया। साहित्य साधना के लिए भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण‘ की उपाधि से अलंकृत किया। इन्हें साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हुए।

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पन्त जी हिन्दी की नई धारा के जागरूक कवि और कलाकार हैं। प्रकृति सुन्दरी की गोदी में जन्म लेने तथा विद्यार्थी जीवन में अंग्रेजी कवि शैली, कीट्स, वर्ड्सवर्थ की स्वच्छन्द प्रवृत्तियों से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण वे नई दिशा में अग्रसर हो गए। वे प्रकृति और जीवन की कोमलतम विविध भावनाओं के कवि हैं। प्रकृति की प्रत्येक छवि को, जीवन के प्रत्येक रूप को उन्होंने आत्म-विभोर और तन्मय होकर देखा है। उनके काव्य में दो धाराओं का समावेश हो गया

है- एक में उनके कवि हृदय का स्पन्दन है, तो दूसरी में विश्व जीवन की धड़कन । ध्येय – मुख्य रूप से पन्त जी दृश्य जगत के कवि हैं। पहले वे प्राकृतिक सौन्दर्य के कवि थे। बाद में, वे जीवन सौन्दर्य के कवि के रूप में बदल गए। पन्त जी विश्व में ऐसा समाज चाहते हैं जो एक-दूसरे के सुख-दुःख का सहगामी हो सके। पन्त की पंक्तियों में झाँककर देखिए-

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“जग पीड़ित रे अति दुःख से, जग पीड़ित रे अति सुख से।

मानव जग में बट जाए, दुःख-सुख से और सुख-दुःख से।।”

पन्त जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) वाणी- प्रेम, सौन्दर्य और प्रकृति चित्रों से युक्त प्रथम रचना।

(2) पल्लव – छायावादी शैली पर आधारित काव्य संग्रह।

(3) गुञ्जन – सौन्दर्य की अनुभूति प्रधान गम्भीर रचना।

(4) युगान्त, (5) युगवाणी, (6) ग्राम्य – प्रगतिशील विचारधारा की मानवतावादी कविताएँ, (7) स्वर्ण किरण, (8) स्वर्ण धूलि, (9) युगपथ, (10) उत्तरा, (11) अतिमा, (12) रजत-रश्मि, 13) शिल्पी, (14) कला और बूढ़ा चाँद, (15) चिदम्बरा, (16) रश्मिवन्ध, (17) लोकायतन महाकाव्य आदि उनके काव्य संग्रह हैं।

उपर्युक्त के अतिरिक्त ‘ग्रन्थि’ (खण्डकाव्य), ज्योत्सना, परी, रानी आदि नाटक, ‘हाट’ उपन्यास), पाँच कहानियाँ (कहानी संग्रह), ‘मधु ज्वाल’ उमर खैयाम की रूबाइयों का अनुवाद, नथा ‘रूपाभ’ पत्र का सम्पादन उनकी प्रतिभा का प्रमाणं है।

उपाधि एवं पुरस्कार-लोकायतन-महाकाव्य है- उ. प्र. सरकार द्वारा दस हजार रुपये से पुरस्कृत।’कला और बूढ़ा चाँद’ पर साहित्य अकादमी का पाँच हजार रुपये से पुरस्कृत। ‘चिदम्बरा’ पर एक लाख रुपए का पुरस्कार ज्ञानपीठ द्वारा दिया गया। ज्ञानपीठ पुरस्का प्राप्त करने वाले हिन्दी के सबसे पहले कवि थे पन्त जी। भारत सरकार ने ‘पद्य भूषण’ की उपाधि धरती से अलंकृत किया।

• भाव-पक्ष:

(1) सुकुमार भावना और कोमल कल्पना- पन्त जी स्वभाव से अत्यन्त कोमल औ सुकुमार स्वभाव थे। अतः उन्होंने अपने काव्य में कोमल बिम्बों का ही विधान किया है। में ‘कोमल भावनाओं का सुकुमार कवि’ कहा जाता है।

(2) वेदना की अनुभूति – पन्त के अनुसार कविता विरह से उठा हुआ गान होती है। “वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान। उमड़ कर नयनों से चुपचाप, वही होगा कविता अनजान।।”

(3) प्रकृति का सजीव चित्रण- पन्त जी का सारा जीवन प्रकृति की गोद में बीता, अतः प्रकृति के साथ ही उन्होंने भावात्मक तल्लीनता स्थापित कर ली। पन्त जी की कविता में प्रकृति के रूप, रंग, रस, गन्ध, ध्वनि तथा गति के चित्र प्राप्त होते हैं। गंगा में उतराती नाव का गतिमय चित्र प्रस्तुत है-

‘मृदु मन्द-मन्द, मन्थर-मन्थर ।

लघु तरणि हंसिनी-सी सुन्दर,

तिर रही खोल पालों के पर।।’

पन्त जी ने प्रकृति में आलम्बन, उद्दीपन, मानवीकरण और एक उपदेशिका के रूप को देखा है। इस तरह वे प्रकृति के अप्रतिम चितेरे हैं।

(4) प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण- चिरकुमार कवि पन्त जी की कविता छायावादी है। इन्होंने प्रेम की भावना को और सूक्ष्म भावों के चित्रों को काव्य में उभारा है। संयोग और वियोग को अनुभूतियाँ भी चित्रोपम हैं।

(5) रहस्य भावना – अज्ञात और दिव्य सत्ता के प्रति जिज्ञासा को अपने ‘मौन-निमंत्रण’ में कहते हैं-

‘न जाने कौन, अये द्युतिमान आन मुझको अबोध अज्ञान।

सुझाते हो तुम पथ अनजान । फेंक देते छिद्रों में गान।’

यह जिज्ञासा ही उनके रहस्यवाद की द्योतक है।

(6) मानवतावादी दृष्टिकोण – कवि मानव के आन्तरिक और बाह्य रूप पर अपनी उन् दृष्टि डालते हैं-

“सुन्दर है विहग, सुमन सुन्दर,

मानव तुम सबसे सुन्दरतम

(7) नारी के प्रति सहानुभूति – चिर पीड़िता नारी के प्रति अनन्त करुणा और सहानुभूति द्रष्टव्य है-

“मुक्त करो नारी को मानव !

चिर वन्दिनी नारी को।”

(8) प्रगतिवाद – पन्त जी पर कार्ल मार्क्स का प्रभाव था। वे आदर्शों के आकाश से ठोस धरती पर उतरकर आने का स्वर- ‘युगान्त’, ‘युगवाणी’ और ‘ग्राम्या’ में गुंजायमान करते हैं।

(9) दार्शनिकता- पन्त जी ने जीवन, जगत् और ईश्वर पर अपने दार्शनिक विचार व्यक्त किये हैं।

• कला-पक्ष:

(1) सशक्त भाषा – पन्त जी का भाषा कोमलकान्त पदावली से युक्त, सहज और सुकुमार है। उसमें चित्रमयता, लालित्य और ध्वन्यात्मकता विद्यमान है। माधुर्य प्रधान अनूठा शब्द चयन है। भावानुसार भाषा कोमलता को त्यागकर भयानकता को प्राप्त हो उठती है।

(2) छायावादी लाक्षणिक शैली – छायावाद से प्रभावित इनकी रचनाओं में लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता तथा सजीव बिम्ब-विधान सर्वत्र द्रष्टव्य है।

(3) स्वाभाविक अलंकरण- इनकी रचनाओं में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक, रूपकातिशयोक्ति एवं अन्योक्ति अलंकारों का मौलिक प्रयोग किया गया है। मानवीकरण, विशेषण विपर्यय, ध्वन्यार्थ व्यंजना आदि नवीन अलंकारों का बहुत सुन्दर प्रयोग हुआ है।

(4) लय प्रधान छन्दों की योजना – पन्त जी ने अपनी कविताओं में तुकान्त और अतुकान्त सभी प्रकार के परम्परागत व नवीन छन्दों का प्रयोग किया है। उनके छन्दों में लय है एवं संगीत तत्व की प्रधानता है।

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• साहित्य में स्थान:

पन्त जी का काव्य, भाव और कला दोनों पक्षों में सशक्त और समृद्ध है। भाव कल्पना, चिन्तन, कला सभी दृष्टियों से काव्य उत्कृष्ट है। आधुनिक हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ कवियों में पन्त जी का अति महत्वपूर्ण स्थान है।

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सुमित्रानंदन पंत की साहित्यिक रचनाएं 

Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay में अब हम उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों के बारे में बता रहे है। जिन्हें आप नीचे दी गई तालिका में देख सकते हैं:-

काव्य रचनाएं 

काव्य  प्रकाशन वर्ष 
वीणा वर्ष 1919
ग्रंथि वर्ष 1920
पल्लव वर्ष 1926
गुंजन वर्ष 1932
युगांत वर्ष 1937
युगवाणी वर्ष 1938
स्वर्णकिरण वर्ष 1947
स्वर्णधूलि वर्ष 1947
उत्तरा वर्ष 1949
युगपथ वर्ष 1949
चिदंबरा वर्ष 1958
कला और बूढ़ा चाँद वर्ष 1959
लोकायतन वर्ष 1964
गीतहंस वर्ष 1969

उपन्यास 

उपन्यास  प्रकाशन वर्ष 
हार वर्ष 1960

कहानियाँ

कहानी संग्रह  प्रकाशन वर्ष 
पाँच कहानियाँ वर्ष 1938

आत्मकथात्मक संस्मरण

आत्मकथात्मक संस्मरण प्रकाशन वर्ष 
साठ वर्ष : एक रेखांकन वर्ष 1963

पुरस्कार व सम्मान

Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay की जानकारी के साथ ही उनकी साहित्य साधना के लिए उन्हें मिले कुछ प्रमुख साहित्यिक पुरस्कारों व सम्मान के बारे में नीचे दिए गए बिंदुओं में बताया जा रहा है:-

  • वर्ष 1960 में उनके काव्य संग्रह ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
  • वर्ष 1961 में भारत सरकार ने साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पंत जी को ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया था।
  • वर्ष 1968 में ‘चिदंबरा’ काव्य-संग्रह के लिए सुमित्रानंदन पंत को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
  • इसके साथ ही ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ को सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया हैं।
  • भारत सरकार ने सुमित्रानंदन पंत के सम्मान में ‘डाक टिकट’ भी किया हैं।

छायावाद के एक युग का अंत 

सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में ही बीता। उनका साहित्यिक जीवन लगभग 60 वर्षों तक रहा जिसमें उन्होंने कई विशिष्ट काव्य रचनाएँ की। बता दें कि 28 दिसंबर 1977 को 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया और इसी के साथ छायावाद के एक युग का अंत हो गया। इसके बाद उनके पैतृक गांव कौसानी में उनके घर को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर ‘सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय में परिणत किया गया। इस संग्रहालय में महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी की एक मूर्ति स्थापित है और यहाँ उनकी व्यक्तिगत चीजें, प्रशस्तिपत्र, विभिन्न संग्रहों की पांडुलिपियों को सुरक्षित रखा गया है।

काव्यगत विशेषताएं (Sumitranandan Pant Ki Kaavyagat Visheshatayen) :-

पंत जी के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता उनके भाषा की सरलता तथा उनके ललित और मधुर पदावली है। उनकी भाषा बड़े ही कोमल होता है, जिससे सुनने और पढ़ने में बड़ा ही आनंद आता है।

उनकी कविता की एक और विशेषता उनकी सुंदर कल्पनाएं है। इसके साथ साथ भिन्न भिन्न प्रतीकों का प्रचलन तथामनुष्य के हर एक बेदना के लिए अलग अलग प्रतीकों का व्यवहार उनके कविता के सबसे मनोरम भाग मैं आता है।

जैसे प्रभात आनद और स्फूर्ति का प्रतीक है, आंसू दुःख का प्रतीक है और धूल तुच्छ वस्तुओं का प्रतीक है। अनेकों जगह पर उन्होंने भावों का उल्लेख न करके उनके लिए प्रतीकों का इस्तेमाल किया है। उनके कविता मुख्य रूप से कल्पना जगत की कविताएं है और असली जगत से काफी दूर है।

विचारधारा (Sumitranandan Pant Ki Bichaardhaaraa) -:

उनका संपूर्ण साहित्य सत्यम शिवम सुंदरम के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा। जहां प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सुंदर के रमणीय चित्र मिलते हैं वही दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सोच में कल्पनाओं कोमल भावनाओं के और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशील।

उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से प्रेरित है। पंत परंपरावादी आलोचकों और प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी आलोचकों के सामने कभी नहीं झुके। उन्होंने अपनी कविताओं में पूर्ण मान्यताओं को नकारा नहीं। उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले आरोपों को नम्र अवज्ञा कविता के माध्यम से खारिज किया।

सुमित्रा नंदन पंत जी का प्रकृति चित्रण :-

सुमित्रानन्दन पन्त जी को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा गया है। उनका जन्म प्रकृति की रम्य गाड में हुआ। जिसके सौन्दर्य को उन्होंने भली-भाँति देखा परखा था। कविता करने की प्रेरणा भी उन्हें प्रकृति निरीक्षण से मिली थी। प्रकृति उनकी चिर सहचरी रही है। वे नारी सौन्दर्य की तुलना में प्रकृति सौन्दर्य को वरीयता देते हुए कहते हैं:

छोड़ द्रुमों की मृदुछाया।
तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले तेरे बाल जाल में
कैसे उलझा दूं लोचन?

पन्त की कविता में प्रकृति के विविध रूपों की मनोहर झांकी मिलती है। उनके प्रकृति चित्रण की विशेषताएँ अग्र शीर्षकों में बताई जा सकती है।

आलम्बन रूप में प्रकृति चित्रण :-

पन्त ने प्रकृति को बड़े सूक्ष्म रूप में देखा है। उनकी कविताओं में प्रकृति के आलम्बन रूप की सुन्दर झाँकी देखने को मिलती है। उनकी बादल, गुंजन, परिवर्तन, एक तारा, नौका-विहार इसी प्रकार की कविताएँ हैं। यथा-

“पावस ऋतु थी पर्वत प्रदेश, पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश।।
मेखलाकार पर्वत अपार, अपने सहस्र द्ंग-सुमन फाड़।
अवलोक रहा है बार-बार, नीचे जल में निज महाकार।

उद्दीपन रूप में प्रकृति :-

चित्रण किसी भाव के उद्दीपन के लिए जब प्रकृति को आधार बनाया जाता है। तब उद्दीपन रूप में प्रकृति चित्रण होता है। सुमित्रानन्दन पन्त के काळ्य में अधिक तो नहीं, फिर भी इस प्रकार का चित्रण देखने को मिलता है, यथा-

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लहरें अधीर सरसी में तुमको, तकतीं उठ-उठकर।
सौरभ समीर रह जाता प्रेयसि ठण्डी साँसें भर।

मानवीकरण के रूप में प्रक्रति चित्रण ;-

प्रकृति पर चेतनता का आरोप मानवीकरण कहा जाता है। सुमित्रानन्दन पन्त जी प्रकृति में मानव-क्रिया, मानव-भावों आदि का तादाम्य प्रकृति के साथ स्थापित करते हैं। जड़ प्रकृति भी पन्त जी के लिए जड़ नहीं है, उसमें भी चेतना है। यथा-

‘देखता हूँ जब उपवन
पियालों में फूलों के
प्रिये भर-भर अपना यौवन
पिलाता है मधुकर को।’

उपदेशक रूप में प्रकृति चित्रण :-

“पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश’ मानव को कभी-कभी सुन्दर उपदेश देता है। कवि पन्त जी ने अनेक रचनाओं में प्रकृति को उपदेशक के रूप में चित्रित कियागया है, जैसे-

हँसमुख प्रसून सिखलाते, पल भर भी जो हँस पाओ,
अपने घर के सौरभ से, जग का आँगन भर जाओ।

मानव के प्रति सहानुभूति रूप में प्रकृति चित्रण :-

प्रकृति ममतामयी होती है। मानव के दुश्ख से दुखी होकर उससे सहानुभूति रखती है। मानव के कष्टों के साथ प्रकृति भी दुखी हो जाती है। मानव प्रेम का चित्रण सुमिंत्रानन्दन पन्त की इन पंक्तियों में देखिए-

सुन्दर हैं विहग, सुमन सुन्दर
सबसे सुन्दरतम।

रहस्यात्मक रूप में प्रकृति चित्रण :-

ईश्वर का प्रत्यक्ष साक्षात्कार करने की प्रवृत्ति रहस्यवाद है। कवि सुमित्रानन्दन पन्त ने भी प्रकृति में किसी अव्यक्त ईश्वर को देखा है। ऐसे ईश्वर को, जो सारे संसार का नियामक है, उसका संचालन करता है। जैसे-

न जाने कौन, अये दुतिमान!
जान मुझको अबोध, अज्ञान
सुझाते हो तुम पथ अनजान,
फूंक देते छिट्रों में गान

प्रतीक रूप में प्रकृति चित्रण :-

प्रकृति चित्रण में सौन्दर्य और सजीवता की सृष्टि के लिए प्रतीकों की योजना की जाती है। सुमित्रानन्दन पन्त जी के काव्य में इस प्रकार का प्रकृति-चित्रण पर्याप्त मात्रा में देखा जा सकता हैं। परिवर्तन’कविता की सजीवता नवीनता और मधुरता प्रतीको के कारण ही है। प्रकृति का सुन्दर युवती के रूप में एक
प्रतीकात्मक चित्रण देखिए:

अभी तो मुकुट बँंधा था माथ
हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले भी थे न लाज के बोल
खिले भी चुम्बन शून्य कपोल

पंत जी की भाषा और शैली :-

पंत जी की कविता का आधे से अधिक सौंदर्य उनके ललित और कर्ण मधुर भाषा में है। उनकी भाषा सरल और माधुर्यपूर्ण होती हैं इनमें कर्णकटु शब्दो की अभाव होता है और संयुक्त शब्दो का प्रयोग यथाशक्ति काम ही देखा जाता है। उनकी भाषा कलकल ध्वनि से बहते हुए झरने के समान मिठास लिए आती है। वे यत्नपूर्वक ऐसे शब्दों का चुनाव करते है, जिनसे माधुरता स्वयं दिखाई दे रही होती है।

परंतु कहीं कहीं लाचारिक शब्दों का प्रयोग अधिकतर होने से कविता का अर्थ जटिल और अस्पष्ट हो जाता है। पंत जी के भाव कोमल होते हुए भी कई बार बोहोत सुक्ष्म होता है, जिन्हें प्रकार कर पाने मैं भी भाषा असमर्थ रही है।

द्विवेदी युग की शुष्क भाषा में सरसता और कोमलता लाने का श्रेय छायावादी कवियों को ही दिया जाता है, जिनमें से पंत जी भी एक है। उन्होंने अपने काफी कविताओं की रचना मुक्तक रूप से की है।

उत्तरोत्तर जीवन -:

अपने शिक्षा के बाद लगभग 1931 में सुमित्रानंदन पंत जी कुंवर सुरेश सिंह के साथ कालाकांकर प्रतापगढ़

चले गए और अनेक वर्षों तक वही रहे। 1938 में इन्होंने प्रगतिशील मानसिक पत्रिका रूपाभ का संपादन किया।

श्री अरविंद आश्रम की यात्रा से इनमें अध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ और उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया।

1950 से 1957 तक आकाशवाणी में परामर्शदाता रहे। उसके बाद 1958 में

युगवाणी से वाणी काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन चितांबरा प्रकाशित हुआ,

जिस पर 1958 में उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।

1960 में कला और बूढ़ा चांद काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।

1961 में पद्मभूषण की उपाधि से विभूषित हुए। 1964 में विशाल महाकाव्य लोकायतन का प्रकाशन हुआ।

कालांतर में इनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए।

यह जीवन पर्यंत रचनारत रहे। अविवाहित पंत जी के अंतर स्थल में नारी और प्रकृति के

प्रति आजीवन सौंदर्य परख भावना रही। इनकी मृत्यु 28 दिसंबर 1957 को हुई।

FAQs 

Q, 1 सुमित्रानंदन पंत का जन्म कहाँ हुआ था?

सुमित्रानंदन पंत का जन्म बागेश्वर ज़िले के कौसानी, उत्तराखंड में 20 मई 1900 को हुआ था।

 

Q, 2 सुमित्रानंदन पंत किस काल के कवि थे?

सुमित्रानंदन पंत आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के श्रेष्ठ कवि थे।

 

Q, 3 ‘चितंबरा’ काव्य-संग्रह के रचनाकार का क्या नाम है?

‘चितंबरा’ सुमित्रानंदन पंत की लोकप्रिय काव्य रचनाओं में से एक हैं।

 

Q, 4 किस काव्य-संग्रह के लिए सुमित्रानंदन पंत को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से नवाजा गया था?

बता दें कि सुमित्रानंदन पंत को ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।

 

Q, 5 सुमित्रानंदन पंत का निधन कब हुआ था?

सुमित्रानंदन पंत का 28 दिसंबर 1977 को 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था।

सुमित्रानंदन पंत जी का मूल नाम क्या था
सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गुसाई दत्त था। लेकिन उन्हें अपने इतना पसंद नहीं था

इसलिए उन्होंने अपने नाम को बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया।

सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को कौसानी, अल्मोड़ा में हुआ था।

सुमित्रानंदन पंत का पिता का नाम क्या था?
पंडित गंगा दत्त पंत

सुमित्रानंदन पंत का अन्य नाम क्या है?
Ans :- गुसाई दत्त

सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ था?
20 मई, सन् 1900

सुमित्रानंदन पंत का मृत्यु कब हुआ था?
28 दिसम्बर, सन् 1977

सुमित्रानंदन पंत का जन्म स्थान कहां है ?
कौसानी (अल्मोड़ा)

सुमित्रानंदन का मृत्यु कहां हुआ था?
इलाहाबाद उत्तर प्रदेश (भारत)

सुमित्रानंदन के पिता का नाम क्या था?
गंगा दत्त पंत

सुमित्रानंदन के माता का क्या नाम था?
सरस्वती देवी

मित्रानंदन के शैली क्या थी?
गीतात्मक, मुक्तक शैली, संगीतात्मक से युक्त

सुमित्रानंदन पंत की रचनाएं कौन-कौन सी है?
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएं कौन-कौन सी है लोकायतन, ग्रन्थि, युगपथ, उत्तरा,

वीणा, गुंजन, युगान्त, ग्राम्या, अनिता, चिदम्बरा, युगवाणी, स्वर्ण किरण, धूल

Suraj

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