Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay : ‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर का संपूर्ण जीवन परिचय
‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह ‘दिनकर’
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय: रामधारी सिंह दिनकर Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय भाव को जनमानस की चेतना में नई स्फूर्ति प्रदान करने वाले कवि के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें हिंदी साहित्य के कालखंड में ‘छायावादोत्तर काल’ का प्रमुख कवि माना जाता है, इसके साथ ही उन्हें प्रगतिवादी कवियों में भी उच्च स्थान प्राप्त हैं।
रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में गद्य और पद दोनों ही धाराओं में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। वह एक कवि, पत्रकार, निबंधकार होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। क्या आप जानते हैं रामधारी दिनकर जी को ‘क्रांतिकारी कवि’ के रूप में भी ख्याति मिली हैं। उन्होंने ‘रश्मिरथी’, ‘कुरूक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ जैसी रचनाओं में अपनी जिस काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया, वह हिंदी साहित्य जगत में अविस्मरणीय रहेगा। आइए अब हम ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | रामधारी सिंह दिनकर |
जन्म | 30 सितंबर 1908 |
जन्म स्थान | सिमरिया ग्राम, बेगूसराय, बिहार |
पिता का नाम | रवि सिंह |
माता का नाम | मनरूप देवी |
भाषा | परिष्कृत खड़ीबोली |
प्रमुख रचनाएँ | उर्वशी, कुरुक्षेत्र, परशुराम की प्रतीक्षा, रेणुका आदि। |
उपाधि | राष्ट्रकवि |
सम्मान | साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म भूषण आदि। |
निधन | 24 अप्रैल 1974, चेन्नई, तामिलनाडु |
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
छायावादोत्तर काल के प्रमुख कवियों में एक रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय ज़िले के सिमरिया ग्राम में एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम ‘रवि सिंह’ और माता का नाम ‘मनरूप देवी’ था। रामधारी सिंह दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही सीमित साधनों के बीच हुई थी। इसके बाद वह उच्च शिक्षा के लिए पटना चले गए और पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने वर्ष 1932 में B.A. में स्नातक की डिग्री हासिल की।
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स्वतंत्रता आंदोलन का दौर
इसके पश्चात् उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए माध्यमिक विद्यालय में अध्यापक के रूप में कार्य किया। फिर उन्होंने कुछ समय तक बिहार सरकार में सब-रजिस्टार की नौकरी की। यह वो समय था जब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। रामधारी सिंह दिनकर भी अंग्रेजों के खिलाफ अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से जन भावना में देश के प्रति नई चेतना को जगाने का कार्य कर रहे थे। उन्हें हिंदी भाषा के साथ साथ संस्कृत, उर्दू, बांग्ला और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान था।
चेन्नई में हुआ निधन
वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् रामधारी सिंह दिनकर ने मुज़फ़्फ़रपुर के एक कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इसके बाद वर्ष 1952 में उन्हें राज्यसभा सदस्य के रूप में चुन लिया गया जहाँ उन्होंने तीन कार्यकालों तक अपना अहम योगदान किया। फिर उन्हें ‘भागलपुर विश्वविद्यालय’ में कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया और इसके एक वर्ष बाद ही भारत सरकार ने उन्हें अपना मुख्य ‘हिंदी सलाहकार’ बना दिया। यहाँ उन्होंने 1965 से 1971 तक कार्य किया। वहीं 24 अप्रैल 1974 को हिंदी साहित्य के इस महान कवि का चेन्नई, तमिलनाडु में इनका निधन हो गया।
‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर का संपूर्ण जीवन परिचय – Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay
• जीवन-परिचय:
श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के मुंगेर जनपद के सिमरिया घाट नामक गाँव में सन् 1908 ई. (संवत् 1965 वि.) में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. (ऑनर्स) किया। आप एक वर्ष मोकामा घाट के विद्यालय में प्रधानाचार्य रहे। सन् 1935 ई. में सब-रजिस्ट्रार के रूप में सरकारी नौकरी में आए। सन् 1942 ई. में ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रचार विभाग में आए और उपनिदेशक के पद पर रहे। बाद में, मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे। आप सन् 1952 ई. से सन् 1963 ई. तक राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत राज्यसभा के सदस्य रहे। सन् 1964 ई. में भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर आपकी नियुक्ति हुई। हिन्दी साहित्य का यशस्वी ‘दिनकर’ सन् 1974 ई. (सं. 2031 वि.) में सदैव के लिए अस्त हो गया।
• साहित्य-सेवा
‘दिनकर’ जी ने भारत सरकार की ‘हिन्दी समिति’ के सलाहकार और आकाशवाणी में निदेशक के पद पर रहकर हिन्दी के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। ‘दिनकर’ जी पर पं. रामनरेश त्रिपाठी की ‘पथिक’ और मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती’ रचनाओं का बड़ा प्रभाव पड़ा। ‘दिनकर’ जी प्रारम्भ से ही लोक के प्रति निष्ठावान, सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति सजग और जनसाधारण के प्रति समर्पित कवि थे। इनकी कविताओं में राष्ट्रीयता की छाप सबसे अधिक है।
दिनकर ने काव्य और गद्य दोनों ही क्षेत्रों में सशक्त साहित्य का सृजन किया है। उनकी कविता हृदय को झकझोर डालती है। वर्तमान भारत की दलित आत्मा उनकी कविता में जाग उठी है। दिनकर अपनी रचनाओं के माध्यम से देशब्यापी जागरण का मंच ऊँचे स्तर का बना चुके हैं। उन्होंने अपनी कृतियों केही माध्यम से भारतीय आर्य संस्कृति की पतितावस्था के प्रति असन्तुष्ट होकर क्रान्ति का बिगुल फूंक दिया। द्रष्टव्य है-
“क्रांतिधात्रि कविते जाग उठ, आडम्बर में आग लगा दे।
पतन, पाप, पाखण्ड जले, जग में ऐसी ज्वाला सुलगा दे।।”
ध्येय – उन्होंने हिन्दी साहित्य की सेवा द्वारा देश में समग्र परिवर्तन लाने के लिए सपना देखा था। वे चाहते थे कि भारतीय आर्य संस्कृति को जीवन्तता प्राप्त कराने वाले समर्पित काव्यकार, सचेतक आर्यजन सामूहिक रूप से पाखण्डों की कारा को तोड़ने का बीड़ा उठाएँ तो कर फिर यह राष्ट्र अवश्य ही अपने खोए हुए गौरव को प्राप्त कर सकेगा और विश्वगुरु की उपाधि को पुनः धारण करने में सक्षम होगा। भावी राष्ट्र के कंधे पर कवि के सपने को यथार्थ में बदल देने की जिम्मेदारी है।
उपाधियाँ/सम्मान:- (1) भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति ने उनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा के लिए उन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया।
(2) दिनकर जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के लिए एक लाख रुपया दिया जाता है।
• रचनाएँ :- दिनकर जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) रेणुका,
(2) हुंकार,
(3) रसवन्ती,
(4) द्वन्द्वगीत,
(5) सामधेनी,
(6) कुरुक्षेत्र,
(7) रश्मिरथी,
(8) उर्वशी,
(9) परशुराम की प्रतिज्ञा।।
इनके अतिरिक्त-प्रणभंग, बापू, इतिहास के आँसू, धूप और धुँआ, दिल्ली, नीम के पत्ते, नीलकुसुम, चक्रवात, ‘सीपी और शंख’, नए सुभाषित, ‘कोयला और कवित्व’, आत्मा की आँखें, ‘हारे को हरि नाम’, आदि रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं।
• भाव-पक्ष:
(1) हिन्दी काव्य को नई धारा प्रदत्त – ‘दिनकर’ जी ने काव्य को नई धारा प्रदान की। इन्होंने देश तथा समाज को अपने काव्य का विषय बनाया।
(2) शोषण के विरुद्ध स्वर – दिनकर जी ने अपने काव्य के द्वारा पूँजीपतियों और शासक वर्ग के अत्याचारों एवं शोषण का नग्न चित्रण किया है।
(3) मजदूरों और किसानों के प्रति सहानुभूति – ‘दिनकर’ जी ने गरीबों, मजदूरों तथा किसानों के प्रति अपनी विशेष सहानुभूति को अपने गीतों के माध्यम से प्रकट किया है। भुखमरी, गरीबी दासता के विरुद्ध वे क्रान्ति ला देना चाहते हैं।
(4) उत्साह और ओज – इनके काव्य का अध्ययन करने से पाठकों और श्रोताओं दोनों के हृदय में ओज और उत्साह के भावों की जागति हो उठती है।
(5) राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत- ‘दिनकर’ जी की कविताएँ राष्ट्रीय-भावनाओं से ओत-प्रोत है। उन्होंने गंगा, हिमालय और चित्तौड़ को सम्बोधित करते हुए-राष्ट्रनेताओं, राष्ट्रसेवकों और जनसाधारण में आचरण की पवित्रता, अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ता और राष्ट्रीय हित में बलि
की भावना भरने का आह्वान किया है। दिनकर जी आधुनिक युग के कवि हैं। इनके काव्य में और उत्साह तथा क्रान्ति की भावना झलकती है।
(6) प्राचीन संस्कृति और नई प्रेरणा की झाँकी- दिनकर जी की कविताओं से प्रेरणा मिलती है। इसके साथ ही भारत की प्राचीन संस्कृति की निर्मल झाँकी झलकती है, जिए प्रति हमारे अन्दर गौरव की भावना अपने आप ही उद्भुत हो उठती है।
(7) देशहित तथा लोककल्याण की भावना – ‘दिनकर’ जी की कविताओं में देशां और लोककल्याण के प्रयत्नों का पारावार लहराता है। आपकी कविताओं से नए भारत के निर्मा का एक नया सन्देश मिलता है।
(8) रस- दिनकर जी ने मुख्य रूप से वीर रस प्रधान कविताओं की रचना की है। पर फिर भी कहीं-कहीं शान्त तथा श्रृंगार रस भी प्रयुक्त हुए हैं।
• कला-पक्ष
(1) भाषा- दिनकर जी की भाषा शुद्ध खड़ी बोली है। वे अपनी भाषा में अधिकार तत्सम शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनका शब्द चयन अत्यन्त पुष्ट और भावानुकूल होता है। उनकी भाषा उनके विचारों का पूर्णरूपेण अनुगमन करती है। शब्दों की तोड़-मरोड़ और व्याकरण को अशुद्धियों से उनकी भाषा मुक्त है। इनक भाषा व्याकरण सम्मत है और अलंकारपूर्ण है। उसमें खड़ी बोली का निखरा रूप मिलता है।
(2) शैली- ‘दिनकर’ जी की काव्य शैली ओज प्रधान है। उसमें सजीवता है। तन्मयत उनकी शैली की एक विशिष्ट विशेषता है।
(3) छन्द- ‘दिनकर’ जी ने अपने काव्य में कवित्त, सवैया आदि प्राचीन अलंकारों को तं प्रयोग में लिया ही है, साथ ही कुछ नवीन छन्दों की भी अवतारणा की है। वे छन्द तुकान्त औ अतुकान्त दोनों ही हैं।
(4) अलंकार – ‘दिनकर’ जी की कविताओं में अलंकारों की घनी छटा नहीं दिखाई पड़तां है। उन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास तथा श्लेष आदि अलंकारों का स्वाभाविक रूप से सहज ही प्रयोग किया है। अलंकारों के असहज प्रयोग के लिए उन्होंने सदैव विरुद्ध भाव ही अपनाया।
• साहित्य में स्थान
दिनकर जी की प्रतिभा बहुमुखी है। वे अत्यन्त लोकप्रिय कवि हैं।
भाव, भाषा तथा शैलो सभी दृष्टियों से वे एक कुशल साहित्यकार हैं।
वे अपने युग के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी भाषा में ओज,
उनके भावों में क्रान्ति की ज्वा ला और उनकी शैली में प्रवाह है।
उनकी कविता में महर्षि दयानन्द की सी निडरता, भगत सिंह जैसा बलिदान,
गाँधी की सी निष्ठा एवं कबीर की सी सुधार भावना एवं स्वच्छन्दता विद्यमान है। वे आधुनिक हिन्दी काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि हैं।
रामधारी सिंह दिनकर की साहित्यिक कृतियाँ
यहाँ रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay)
के साथ ही उनकी कुछ प्रमुख काव्य और गद्य कृतियों के बारे में बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-
काव्य कृतियाँ
काव्य कृति | प्रकाशन वर्ष |
बारदोली-विजय संदेश | वर्ष 1928 |
रेणुका | वर्ष 1935 |
हुंकार | वर्ष 1938 |
रसवन्ती | वर्ष 1939 |
द्वंद्वगीत | वर्ष 1940 |
कुरूक्षेत्र | वर्ष 1946 |
इतिहास के आँसू | वर्ष 1951 |
रश्मिरथी | वर्ष 1952 |
उर्वशी | वर्ष 1961 |
परशुराम की प्रतीक्षा | वर्ष 1963 |
हारे को हरिनाम | वर्ष 1970 |
रश्मिलोक | वर्ष 1974 |
गद्य कृतियाँ
रचना | प्रकाशन वर्ष |
मिट्टी की ओर | वर्ष 1946 |
अर्धनारीश्वर | वर्ष 1952 |
रेती के फूल | वर्ष 1954 |
हमारी सांस्कृतिक एकता | वर्ष 1955 |
भारत की सांस्कृतिक कहानी | वर्ष 1955 |
संस्कृति के चार अध्याय | वर्ष 1956 |
उजली आग | वर्ष 1956 |
काव्य की भूमिका | वर्ष 1958 |
राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी | वर्ष 1968 |
भारतीय एकता | वर्ष 1971 |
मेरी यात्राएँ | वर्ष 1971 |
दिनकर की डायरी | वर्ष 1973 |
चेतना की शिला | वर्ष 1973 |
आधुनिक बोध | वर्ष 1973 |
साहित्यिक सम्मान
यहाँ रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay)
जानकारी के साथ ही उन्हें मिले साहित्यिक सम्मान के बारे में भी बताया गया है।
जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-
- वर्ष 1946 में प्रकाशित ‘कुरुक्षेत्र’ रचना के लिए उन्हें काशी नागरी प्रचारिणी सभा,
- उत्तर प्रदेश और भारत सरकार से सम्मान मिला था।
- इसके बाद उन्हें वर्ष 1959 में ‘संस्कृति के चार अध्याय’ रचना के लिए
- ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद’ ने उन्हें वर्ष 1959 में ‘पद्म विभूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया था।
- वर्ष 1961 में रामधारी सिंह दिनकर उनकी प्रसिद्ध काव्य रचना ‘उर्वशी’ के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
- बिहार राज्य के राज्यपाल ‘जाकिर हुसैन’ जो बाद में भारत के तीसरे राष्ट्रपति भी बने।
- उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर जी को ‘डाक्ट्रेट’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।
- बता दें कि वर्ष 1999 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में ‘डाक टिकट’ भी जारी किया था।
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FAQs
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय ज़िले के सिमरिया ग्राम में हुआ था।
यह रामधारी सिंह दिनकर का लोकप्रिय काव्य-संग्रह है जिसका प्रकाशन वर्ष 1946 में हुआ था।
बता दें कि ‘बारदोली-विजय संदेश’ रामधारी सिंह दिनकर का प्रथम काव्य-संग्रह है।
‘संस्कृति के चार अध्याय’ रचना के लिए रामधारी सिंह दिनकर को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
रामधारी सिंह दिनकर का 24 अप्रैल 1974 को चेन्नई, तमिलनाडु में निधन हुआ था।